Thursday, September 21, 2017

Ved-Mantra MEMORIZE Challenge



Ved-Mantra MEMORIZE Challenge
नवरात्री आ गयी
नवरात्री के नौ दिन पौराणिक व्यक्ति नियम से (1)उपवास करेंगे, (2) नित्य माताजी के मन्दिर जायेंगे, घंटा बजायेंगे (2) चंडी-पाठ करेंगे, दुर्गा सप्तशती पढेंगे आदि आदि
लेकिन ......लेकिन
आप क्या करेंगे ??
आप तो पौराणिक हैं नहीं !!!! फिर क्या खाली बैठे रहेंगे ???
नहीं नहीं !!!
खाली बैठने वाले को वेद में दस्यु कहा है | ऋग्वेद 10/22/8 मन्त्र में कहा है "अकर्मा दस्यु:" अर्थात् कर्म न करने वाला लेकिन हम तो आर्य हैं और आर्य का मतलब होता है श्रेष्ठ | श्रेष्ठ वह व्यक्ति होता है जो निर्माण करे....कुछ नया सीखे, आगे बढ़े आदि
.
तो नौ दिनों में हम क्या करें ?
.
नौ दिनों में हम वेद के नौ मन्त्रों को याद करेंगे |
.
वेद के बहुत सारे मन्त्रों में से कोई भी नौ मन्त्र चुन लीजिये और याद कीजिये | प्रतिदिन एक मन्त्र याद कीजिये |
.
यदि मन्त्र पहले से याद हैं तो Challenge के तीन स्तर नीचे अनुसार हैं उसमें अपने आपको परखें :-
मान लीजिये, आपको ईश्वर-स्तुति-प्रार्थना-उपासना के आठ मन्त्र और गायत्री मन्त्र याद है तो हो गए नौ | इन नौ मन्त्रों को नीचे के चुनौती स्तर से परखें |
१) कंठस्थ मन्त्रों को पुस्तक के साथ पढ़ें, पुस्तक सामने रख कर धीरे-धीरे मन्त्र देख कर पढ़ें और स्वयं देखें की कहीं गलती तो नहीं हो रही, कहीं छोटी मात्रा (ह्रस्व) को बड़ी मात्रा (दीर्घ) न बोलें, आधे अक्षर को पूरा न बोलें आदि-आदि | यदि कोई उच्चारण दोष हो तो सुधारें |
२) यदि पहले स्तर को पार कर लें तो ......चुनौती का दूसरा स्तर है मन्त्र याद करने के बाद उसे लिख कर देखें की कहीं दोष तो नहीं है | जो पढ़ा है वही याद है या कुछ और ............और जो याद है वही लिखा जा रहा है या कुछ और ? ऐसे करके अपने आपको परखें | परखेंगे तो निखरेंगे और बन जायेंगे आर्य | महात्मा प्रभुआश्रित जी ध्यान की अलग-अलग विधियों में एक विधि यह भी बतलाते हैं की साधक अपनी बन्द आँखों के सामने मन्त्र लिखे और ओ३म् जाप करता रहे | ठीक इसी तरह आप भी कागज पर मन्त्र लिख कर देखें और फिर मिलान करें पुस्तक के साथ | यदि कोई दोष हो तो उसे सुधारें, फिर दुबारा लिखें और तब तक यही क्रम जारी रखें जब तक आपका लेखन शुद्ध न हो जाए |
३) चुनौती का अगला स्तर है मन्त्र के अर्थ को याद करना, अर्थ को समझना, उसकी व्याख्या को पढ़ना, मनन करना आदि |
.
तो आइये ! नवरात्री के नौ दिनों में नीचे के चुने हुए मन्त्र याद करें और अपना जीवन वेद की रक्षा में लगायें |
1)
ओ३म् त्वं हि नः पिता वसो त्वं माता शतक्रतो बभूविथ |
अधा ते सुम्नमीमहे | (ऋग्वेद 8/98/11)
अर्थात् :- हे बहुविध उद्यमों को कर, सबको बसाने वाले परमात्मन् ! तू ही हमारा जनक है और तू ही हमारी जननी है, अतः हम तेरा अपने प्रति सु-मन, सुष्ठु-मन चाहते हैं, तेरी अपने प्रति शुभ-कामनाएँ (Good Wishes) चाहते हैं |
.
2)
ओ३म् उपह्वरे गिरिणां संगथे च नदीनाम् |
धिया विप्रो अजायत || (ऋग्वेद 8/6/28)
अर्थात् :- पर्वतों के समीप वा पर्वतों की उपत्यकाओं में और नदियों के संगम पर ध्यान करने अर्थात् योगाभ्यास करने से मनुष्य विप्र-ज्ञानी, मेधावी, विवेकी, ब्रह्मज्ञानी हो जाता है |
.
3)
मा प्र गाम पथो वयं मा यज्ञादिन्द्र सोमिनः |
मान्तः स्थुर्नो अरातय: || (ऋग्वेद 10/57/1)
अर्थात् :- हे परमेश्वर ! हम सत्पथ से कभी विचलित न हों | हम ऐश्वर्यशाली हो कर यज्ञ आदि शुभ कार्यों से कभी विचलित न हों | यज्ञादि शुभ कर्मों में बाधा उत्पन्न करने वाले अराति भाव - अदानभाव , स्वार्थभाव या काम-क्रोध आदि शत्रु हमारे भीतर न रहें |
.
4)
ओ३म् नमः शम्भवाय च मयोभवाय च
नमः शङ्कराय च मयस्कराय च
नमः शिवाय च शिवतराय च || यजुर्वेद अध्याय 16 मन्त्र 41
अर्थात् :- जो सुखस्वरूप संसार के उत्तम सुखों का देनेवाला कल्याण का कर्त्ता मोक्षस्वरूप , धर्मयुक्त कामों को ही करनेवाला अपने भक्तों को सुख का देने वाला और धर्म-कामों में युक्त करनेवाला, अत्यन्त मङ्गल स्वरूप और धार्मिक मनुष्यों को मोक्षसुख देने हारा है उसको हमारा बारम्बार नमस्कार हो |
.
5)
यो वः शिवतमो रसस्तस्य भाजयतेह नः |
उशतीरिव मातर: || (सामवेद 1838)
अर्थात् :- हे सर्वव्यापक सर्वान्तर्यामी प्रभो ! जो आपका अत्यन्त कल्याणकारी रस है, उसका इस मानव चोले में हमें बच्चों का कल्याण करना चाहनेवाली माताओं के समान सेवन कराओ |
.
6)
उपहूतो वाचस्पतिरूपास्मान् वाचस्पतिर्ह्वयताम्
सं श्रुतेन गमेमहि मा श्रुतेन वि राधिषि || (अथर्ववेद 1/1/4)
अर्थात् :- परमात्मा या आचार्य को हमने अपनी समीपता के लिए बुलाया है, वाचस्पति भी हमको अपने समीप बुलाकर रखे, सुने हुए ज्ञान के साथ हमारा संयोग रहे, ज्ञान से मेरा वियोग न हो |
.
7)
अनुव्रतः पितु: पुत्रो मात्रा भवतु संमना: |
जाया पत्ये मधुमतीं वाचं वदतु शन्तिवाम् || (अथर्ववेद 3/2/2)
अर्थात् :- पुत्र पिता का अनुव्रती हो, पिता के अनुकूल कर्म करनेवाला हो, माता के साथ समान मनवाला - एक मनवाला हो, पत्नी पति मधुमयी शान्तियुक्त वाणि बोलें ||
.
8)
मा भ्राता भ्रातरं द्विक्षन्मा स्वसारमुत स्वसा |
समयञ्च सव्रता भूत्वा वाचं वदत भद्रया || (अथर्ववेद 3/30/3)
अर्थात् :- भाई-भाई से द्वेष न करे और बहन बहन से द्वेष न करे | तुम सब एक मतवाले और एक व्रतवाले होकर परस्पर भद्र वाणी बोलें |
.
9)
ओ३म् अन्ति सन्तं न जहात्यन्ति सन्तं न पश्यति,
देवस्य पश्य काव्यं न ममार न जीर्यति || (अथर्ववेद 10/8/32)
अर्थात् :- मनुष्य ! समीप विराजमान भगवान् को न छोड़ता हुआ है, और समीप विद्यमान भगवान् को न देखता है | दिव्य देव के काव्य को देखो, जो न कभी मरता है और न जीर्ण होता है|
.
10) विजयादशमी का :-(एक अतिरिक्त मन्त्र)
स्तुता मया वरदा वेदमाता प्र चोदयनतां पावमानी द्विजानाम् | आयु: प्राणं प्रजां पशुं कीर्तिं द्रविणं ब्रह्मवर्चसम् | मह्यं दत्त्वा व्रजत ब्रह्मलोकम् || (अथर्ववेद 19/71/1)
अर्थात् :- हे मनुष्यों ! द्विजों को पवित्र करनेवाली वरदा वेदमाता मेरे द्वारा प्रस्तुत की गई वा स्तुत की गई है तुम भी उसका प्रचार करो, उससे औरों को प्रेरित करो | यह आयु, प्राण, प्रजा, पशु, कीर्ति, धन-बल और ब्रह्मतेज-ब्रह्मबलरूप वरों को देनेवाली है | तुम यह सब-कुछ मुझे प्रदान कर ब्रह्मलोक की ओर चलो |
.
मन्दिर में कलश-स्थापन या घट-स्थापन हुआ है वैसे ही आप नवरात्री के दिनों में नौ मन्त्र याद करने का संकल्प स्थापन करें और वेद रक्षा में अपना योगदान दें |
धन्यवाद
विदुषामनुचर
विश्वप्रिय वेदानुरागी